शुक्रवार, 13 मई 2016

उत्पति 
स्वपनदोष  की उत्पति कामोतेजक कल्पना में संलग्न रहने से अधिक होती है। अशलील, कहानियां और फिल्में कामोंतेजना को विकसित कर स्वपनदोष  करती है। मित्रों के बीच आलिंग्न, चुम्बन की बातों से मस्ति’क में यौन कल्पनाएं विकसित होती है। जो स्वप्न में परिणित होकर स्वप्नदोष  करती है। कामवासना की पुर्ति न हो पाने की स्थिति में भी स्वप्नदोष  की उत्पति होती है।
लक्षण 
स्वप्नदोसह  की विक्रति रात दिन किसी भी समय, सोते समय बीर्य स्खलित कर सकती है। स्वप्नदोष  की अधिकता सें  सिरदर्द और नेत्रज्योति के अभाव के लक्षण दिखाई देने लगतें है। चेहरे की स्वभाविका का्रंित लुप्त होने लगती है। कभी कभी मूत्र में जलन और ब’ाणांे में हल्की पीडा भी होने लगती है। स्फूर्ति, उत्साह न’ट होने लगता है। रोगी मानसिक रूप से निरा”ाा अनुभव करता है। मस्ति’क में अजीब से भय का समावे”ा हो जाता है। लडकियों से बातें करते समय घबराहट अनुभव करता है और पसीने से भीग जाने की प्रवति दिखाई देती है। नेत्र भीतर की ओर धंसने अनुभव होते है। ग्री’मऋतु मंे अधिक जलन , पसीना और “ाीत ऋतु में सर्दी की अधिकता अनुभब होती है। मानसिक रूप से रोगी अपने को नपुंसक समझने लगता है। मूत्र अधिक आने की प्रवति होने लगती है जबकि मूत्र खुलकर नही आता। सिर चकराने की विक्रति के लक्षण दिखाई देते है। चिकित्सा स्वप्नदो’ा की विक्रति से मुक्ति पाने के लिए रोगी को मानसिक कल्पनाओं में मैथुन की कुव्रति का निवारण करना आवशयक है। इसके साथ ही रोगी के उदर में को’ठबद्वता नही रहनी चाहिए

पथ्य अपथ्य
स्वप्नदोष  से सुरक्षा के लिए रोगी को आहार विहार का विशेष  ध्यान रखना चाहिए। रात्रि. में हल्के सुपाच्यए तरल खाघ लेने चाहिए। दही, तक्र का सेबन लाभ प्रद होता है। मूत्रबेग को नही रोकना चाहिए बिस्तर पर जाने से पहले अव”य मूत्र त्याग करे। आलू, अरबी, कचालु, मैदा के व्यंजन, अधिक मात्रा में भोजन, अम्ल रस वाले खाद्य, लहसुन, प्याज, अंडे, चाउमीन, चाय काॅफी का अधिक सेवन स्वप्नदोष  की उत्पति करता है। अत इन सब खाद्यों का परहेज करे।
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